श्रंगार - प्रेम >> ना राधा ना रुक्मणी ना राधा ना रुक्मणीअमृता प्रीतम
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अमृता प्रीतम के द्वारा लिखा हुआ एक श्रेष्ठ उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आज हर कृष्ण को अपना वह सपना याद आया तो लगा-इन्सान ने सचमुच कभी इन्सान लफ्ज के अर्थ को और उसी सांस में हरकृष्ण को अहसास हुआ कि इन्सान ने अभी तक रिश्ता लफज की भी थाह नहीं पाई है...
रिश्ता लहू के कौन-कौन से तार से जुड़ता है, लोगों को सगा कर जाता है, और कौन-कौन से तार से उखाड़कर लोगों को पराया कर जाता है, कुछ भी हरकृष्ण की पकड़ में नहीं आया। लेकिन जिन्दगी की सुनी हुई कुछ हकीकतें थी जो उसके सामने, एक खुली किताब की तरह थीं।
रिश्ता लहू के कौन-कौन से तार से जुड़ता है, लोगों को सगा कर जाता है, और कौन-कौन से तार से उखाड़कर लोगों को पराया कर जाता है, कुछ भी हरकृष्ण की पकड़ में नहीं आया। लेकिन जिन्दगी की सुनी हुई कुछ हकीकतें थी जो उसके सामने, एक खुली किताब की तरह थीं।
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